
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को लेकर एक याचिका दिवाकर नाथ त्रिपाठी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी।
आरोप था कि मौर्य ने प्रयागराज स्थित हिंदी साहित्य सम्मेलन से प्राप्त एक अमान्य डिग्री का इस्तेमाल कर चुनाव लड़ा और पेट्रोल पंप हासिल किया।
इसके अलावा उन पर यह भी आरोप था कि उन्होंने गलत जानकारी के आधार पर चुनावी नामांकन दाखिल किया।
हाईकोर्ट ने पहले ही कर दी थी छुट्टी
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यह याचिका पहले जिला न्यायालय में गई थी, लेकिन समय सीमा के उल्लंघन के कारण खारिज हो गई।
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फिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार किया।
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23 मई को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
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जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
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राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने झूठा हलफनामा दाखिल किया और लगाए गए आरोप संज्ञेय अपराध की श्रेणी में नहीं आते।
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सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद याचिका को पूर्ण रूप से खारिज कर दिया।
मौर्य के लिए राजनीतिक और कानूनी सुकून
इस फैसले के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को न केवल कानूनी राहत मिली है, बल्कि यह निर्णय उन्हें आगामी चुनावों और राजनीतिक छवि में भी मजबूती देगा।
उनके लिए यह एक राजनीतिक जीत और “मानसिक राहत” वाला समय बन गया है।
सियासी गलियारों में क्या चर्चा?
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विपक्ष की ओर से मौर्य पर लगाए गए आरोप अब राजनीतिक हथियार की धार खोते दिख रहे हैं।
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मौर्य समर्थकों ने इस फैसले को “सत्य की जीत” और विपक्ष की “गंदी राजनीति की हार” बताया।
क्या यह मामला यहीं खत्म?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम होता है, लेकिन भारतीय राजनीति में कोई भी “मुद्दा” पूरी तरह खत्म नहीं होता। विपक्ष कभी-कभी पुराने आरोपों को फिर से रीपैक कर जनता के सामने परोसने में माहिर होता है।
फिलहाल, मौर्य जी बेफिक्र हो सकते हैं — चाय की चुस्की और ट्वीट्स के साथ!
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को फर्जी डिग्री केस में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिलना, उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता को बल देगा।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि कोर्ट बिना ठोस प्रमाण के किसी भी राजनीतिक व्यक्तित्व को कठघरे में नहीं खड़ा करता।